बालकों में खुदा का दीदार होता है

बाल दिवस 2021 / 14 नवंबर / लेख 

बालकों में खुदा का दीदार होता है

फादर डॉ. एम. डी. थॉमस 

निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली

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14 नवंबर को भारत में ‘बाल दिवस’ मनाया जा रहा है। दुनिया में बाल दिवस अलग-अलग तारीखों को मनाया जाता है। यहाँ तक कि करीब-करीब सभी महीनों व हफ्तों में किसी-न-किसी देश में बाल दिवस मनाया जाता है। भारत में जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस, 14 नवंबर, को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ज़ाहिर तौर पर यह दिन बच्चों के सम्मान में मनाये जाने वाला राष्ट्रीय व अंतर्र्राष्ट्रीय पर्व है।

भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्म 1889 में 14 नवंबर को हुआ था। जवाहर लाल नेहरू को बच्चों से बहुत लगाव था और बदले में बच्चे इन्हें ‘चाचा नेहरू’ कहकर पुकारा करते थे। इसलिए इनके जन्म दिवस को ही बाल दिवस के रूप में मनाये जाने की रिवाज़ है। वैसे तो 1956 से लेकर भारत में 20 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता था। लेकिन, जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद संसद में नीति पारित की गयी थी कि बाल दिवस उनके जन्म दिवस पर, याने 14 नवंबर को, मनाया जायेगा।

जहाँ तक बाल दिवस की शुरूआत का सवाल है, कहा जाता है कि ‘बाल दिवस’ सबसे पहले चाल्स लेयोनार्ड द्वारा 1857 में ‘गुलाब दिवस’ के नाम से मनाया था। बाद में इस दिन का नाम ‘फूल दिवस’ और फिर ‘बाल दिवस’ के तौर पर बदला गया था। यह भी माना जाता है कि टर्की गणतंत्र द्वारा 1920 में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर बाल दिवस मनाया जाने लगा, जिसे 1929 में राष्ट्रपति मुश्तफा केमाल अतातुर्क द्वारा औपचारिक मान्यता दी गयी थी।

पूरी दुनिया के स्तर पर, 1925 में जेनीवा में हुए ‘विश्व बाल कल्याण सभा’ में ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस’ की घोषणा की गयी थी। 1950 से लेकर इस दिन को कई देशों में 01 जून को मनाया जाता रहा है। 1954 में युनाइटड किंग्डम द्वारा प्रस्ताव किया गया कि बच्चों के आपस में आदान-प्रदान और समझ पैदा करने पर और दुनिया भर के बच्चों के कल्याण पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। आगे चल कर 20 नवंबर 1959 को ‘संयुक्त राष्ट्र सभा’ में किये गये ‘बाल अधिकार घोषणा पत्र’ के अनुसार 20 नवंबर को ‘विश्व बाल दिवस’ मनाये जाने लगा है।

साथ ही, संयुक्त राष्ट्र की तरफ से ‘यूनिसेफ’ या ‘संयुक्त राष्ट्र बाल निधि’ बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य के साथ-साथ अधिकार की रक्षा के लिए काम करता है। साल 1989 में संयुक्त राष्ट्र के ‘मानव अधिकार घोषणा पत्र’ में बच्चों के लिए विशेष प्रावधान रहा। साल 1990 में बच्चों पर ‘विश्व बाल सभा’ हुई। साल 2000 के मिल्लेनियम डिदिवेलपमेंट गोल्स् में बच्चों की ओर अहम् ध्यान दिया गया। साल 2012 में यूनिसेफ द्वारा साल 2015 तक हर बच्चे की विद्यालयीन शिक्षा के लिए फैसला किया गया था। ये सभी कदम बच्चों के कल्याण की दिशा में मील के पत्थर के रूप में गिनाये जा सक ते हैं।

भारत के संदर्भ में, जवाहर लाल नेहरु ने बच्चों को देश से जोडक़र भविष्य की कल्पना किया करते थे। उन्होंने इस दिशा में कतिपय योजनएँ भी बनायी थीं। आपका कहना था, ‘‘आज के बच्चे कल के भारत को बनायेंगे। देश का भविष्य इस बात पर निर्भर है हम किस ढंग से उन्हें तैयार करते हैं’’। उन्होंने बच्चों के बारे में यह भी कहा, ‘‘आपसी फर्क की परवाह नहीं करते हुए बच्चे एक दूसरे के साथ खेल सकते हैं’’। ज़ाहिर है, नेहरू की ये बातें असल में प्रेरणादायक हैं। 

इतना ही नहीं, नेहरू ने 1955 में ‘चिल्रनस फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया’ बनाया। आपने बच्चों के बेहतरीन भविष्य की दिशा में भारत की कुछ मौज़ूदा नामी संस्थाओं की रूपरेखा भी तैयार की थी, जैसे ‘ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल सायन्सस्, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलगी, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मानेजमेंट’, आदि। इन योजनाओं के पीछे शिक्षा के ज़रिये बच्चों में मानवीय मूल्यों को बिठाना और उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाना उनका लक्ष्य था।

कहने की ज़रूरत नहीं है कि ‘बाल दिवस’ पर विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। बालकों को लेकर ‘निबंध, भाषण, कविता पाठ, गीत, नृत्य, चित्रकला, खेलकूद, आदि प्रतियोगिताएँ इनमें कुछ खास हैं। इन प्रतियोगिताओं के ज़रिये बाल दिवस क्या है, क्यों मनाया जाता है, बच्चों की समस्यायें क्या हैं, उनके समाधान के तौर-तरीके क्या-क्या हैं, आदि पर रोशनी डाली जाती है।

इसके अलावा, बाल दिवस दुनिया में हिंसा, शोषण, अत्याचार, आदि के शिकार हुए बच्चों के बारे में जागृति फैलाने का दिन भी है। काफी बच्चे सड़क​-गलियारों में रहते हैं और उन्हें भीख माँगना पड़ता है। बहुत बच्चों को मज़दूरी भी करना पड़ता है। बहुत बच्चे शारीरिक और मानसिक समस्याओं से जूझते रहते हैं। कुछ बच्चे लड़ाई-झगड़े की वजह से परेशान रहते हैं। काफी बच्चे लैंगिक शोषण की गिरफ्त में आते रहते हैं। बहुत बच्चों को गुलामी की जि़ंदगी भी जीनी पड़ती है। बाल दिवस इन मज़बूर बच्चों को बच्चों के लायक ज़िंदगी दिलाने के लिए कारगर योजनाएँ बनाने का दिन बने, यही दरकार है।   

बच्चों के बाबत ईसा की कुछ बातें बेहद सटीक हैं। बड़ों से ईसा का कहना है, ‘‘यदि तुम बदलकर बच्चों-जैसे न बन जाओगे, तुम निश्चय ही ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करोगे’’। बच्चों को ईश्वर के बराबर दर्जा देते हुए आप ने कहा, ‘‘जो बच्चों का स्वागत करता है, वह ईश्वर का स्वागत करता है’’। बच्चों पर जुर्म करने वालों से ईसा ने यह भी कहा, ‘‘जो भी बच्चों के लिए पाप का कारण बनता है, उसके लिए यह बेहतर होगा कि वह चक्की की पाट गले में बाँधकर सागर की गहराइयों में कूद जाये’’। मतलब है, बच्चों पर जुर्म करने से बढक़र कोई शैतानी नहीं है और जो ऐसी हरकत करता है वह जीने का हक पूरी तरह से खो चुका है। ज़ाहिर है, बच्चे खुदा-जैसे पाक-साफ और पुनीत हैं तथा उनके साथ पूज्य भाव से बरताव होना चाहिए।

हिंदी फिल्म ‘दो कलियाँ’ का गाना ‘‘बच्चे मन के सच्चे’’ बच्चों की असली रूप पर बहुत खूब बोलता है। ‘बच्चे सारी जग के आँख के तारे हैं’। ‘ये नन्हे फूल ईश्वर को प्यारे लगते हैं’ं। ‘ये खुद रुठे, खुद मन जाये और फिर हमजोली बन जाते हैं’। ‘ये जिसके साथ झगड़ा करते हैं, अगले ही पल बात करते हैं’। ‘इनकी किसी से बैर नहीं है। इनके लिए कोई गैर भी नहीं है’। ‘इनका भोलापन सबको बाँह पसारकर मिलता है’। 

लेकिन, विडंबना यह है कि ‘जब तक इन्सान बच्चा है, तब तक समझ का कच्चा होकर भी सच्चा है’। ‘ज्यों ज्यों उसकी उमर बढ़ता है, उसके मन पर झूठ का मैल चढ़ता है’। वह ‘क्रोध, नफरत व लालच की आदत से घिर जाते हैं’। असल में, बच्चों के ‘तन कोमल ही नहीं, मन भी सुंदर है’। ‘इनमें छूत-छात नहीं, झूठी जात व पात नहीं और भाषा का तकरार नहीं है। ‘इनमें मज़हब की दीवारें नहीं है और इनकी नज़रों में मंदिर मसजि़द गुरुद्वारे एक-जैसे हैं’। हकीकत यह है कि ‘बच्चे बड़ों से बेहतर है’। इसलिए जो भी यह दावा करता है कि वह बड़ा है, उसे बच्चों से सीखना होगा। बालकों में खुदा का दीदार होता है। इसलिए खुदा का दीदार करना हो तो बड़ों को बच्चों-जैसे बनना भी पड़ेगा।

‘बाल दिवस 2021’ ऐसा एक पुनीत मौका है जब बड़े लोग बच्चों से कुछ-न-कुछ सीखते रहने की प्रतिज्ञा करें, जिससे वे बड़े होकर बेकार न हो जायें। बड़े लोग बच्चों में खुदा का दीदार करते रहें और बच्चों-जैसे पाक-साफ होते जायें। यह दिन सभी बच्चों को, खासकर मज़बूर बच्चों को, बच्चों-सी असली जि़ंदगी जीने में हरमुमकिन कोशिश करने का भी है। तभी बेहतर भारत व समाज तामीर होगा।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), and ‘www.ihpsindia.org’ (o); ब्लॅग: https://drmdthomas.blogspot.com’ (p); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p) and ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p)  और दूरभाष: 9810535378 (p).

 

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